अनुरक्ति
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अनुरक्ति

नज़रें चौखट से उठी तो ऐसा लगा मानो तुम ही हो, आज भी हर जगह तुम्हें ही ढूँढ़ता रहता हूँ। सच में तुम हो, आज इतने जमाने बाद, तुम्हें अपने सामने पाकर ऐसा लगा की शायद आज बरसों बाद दिल की आरज़ू कबूल हुई हो। तुम मेरी तरफ बढ़ी और रुक गयी जैसे मुआयना कर रही हो।

करार
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करार

आज पता नहीं क्यों तुम्हारी बहुत याद आ रही है। वो भी क्या दिन थे, जब भी मैं तुमसे कहता था की तुम्हे मिस करता हूँ और तुम, चंद घंटो में मुझसे मिलने के लिए बेताब दौड़ी चली आती थी। तुम्हारा कितना इंतज़ार किया मैंने, उससे भी ज्यादा प्यार किया तुझसे , फिर क्यों आज मैं अकेला सा हूँ इस कहानी में।

अफ़साना
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अफ़साना

लॉक डाउन की एक अधूरी सी प्रेम कहानी।
जब चाहत कैसी समझ न पाए , दिल कहीं और हैं,पर फिर भी किसी से मिल जाये ? कैसा धोखेबाज़ है दिल , जो करीब है उसी का हो जाये, कभी रूबरू हुए हैं ऐसी बेबुनियाद चाहतों से?