अधूरी बातें

मैं रोता नहीं हूँ,
कुछ बातें हैं,
बस मैं कहता नहीं हूँ।

वो क्या है न ,
तुम्हे थोड़ा जल्दी थी जाने की।

ये वक़्त भी आ जाता एक दिन और रूक के,
भला क्या ज़रूरत थी पहले बहाना बनाने की।

बस वही बातें है जो बाकी थी ,
अब कहूँगा तो शायद , वो बदल जाएँगी।

मैं रोता नहीं हूँ ,
बस कभी कभी कुछ गाने सुन कर ,
याद आ जाते हो तुम।

फिर आँखें नशे में डूब कर ,
सारी बातें खंगोल देती हैं।

फिर पता नहीं कैसे छोटी छोटी बूँदें ,
आँखों से झाँक रही होती है।

मैं कहानियाँ सोच रहा होता हूँ ,
पता नहीं सारी कहानियों में तुम्हारी जैसी एक लड़की आ जाती है।

मुस्कुराता हूँ उसे देख कर ,
कुछ गुनगुना भी लेता हूँ
लेकिन ख़त्म होने के बाद उस कहानी के ,
एक ख़ामोशी सी रह जाती है।

लेकिन मैं रोता नहीं हूँ ,
कुछ बातें हैं ,
बस मैं कहता नहीं हूँ।

कुछ गाने हैं जो मुझे बेहद पसंद है ,
और क्यों पसंद हैं , इसका कोई जवाब नहीं।

बस जब सुनता हूँ ,
तो तुम्हे महसूस करने के बहाने ढूंढ़ता हूँ।

मैं वो गाने ढूँढ़ता हूँ ,
जो तुम्हारी आँखों की तारीफ़ से होके,
तुम्हारे हर ज़िक्र को बयान करते हो।

मैं वो बहाने ढूँढ़ता हूँ ,
मेरी फ़िक्र से होकर जो तुम्हे आज़ाद करते हो।

जो बंदिशों में रहके तुम्हे आज भी अपना आसमान समझता है ,
मैं वो पिंजरे में क़ैद एक पंछी ढूँढ़ता हूँ।

ढूँढ़ता हूँ रोज़ इस बहाने ,
की किसी रोज़ मुलाक़ात हो तो मुस्कुराऊँ ,

और अपना हाल छुपा लूँ उससे ,
न कुछ उसे बताऊँ ,

मैं इस तरह से उसे क्यों ढ़ूँढ़ता हूँ ,
मैं इस तरह से उसे क्यों ढ़ूँढ़ता हूँ ,

मजबूर हो जाती हैं आँखें खुद से ,
भर के आँसू इतने सारे , फिर कह नहीं पाती कुछ भी मुझसे।

बस ज़िद करती रहती हैं,
की अब आज़ाद हो जाऊँ इन आंसुओं से ,

फिर कुछ बूँदें झाँक रही होती हैं ,
कुछ पूछ रही होती हैं पता तुम्हारा , करने के लिए शिकायत तुमसे ,

हाँ चुभती है ये ख़ामोशी तुम्हारी,
हाँ अच्छा नहीं लगता अब पहले जैसा,

हाँ चुभती है ये ख़ामोशी तुम्हारी,
हाँ अच्छा नहीं लगता अब पहले जैसा ,

लेकिन मैं रोता नहीं हूँ,
कुछ बातें हैं बस मैं कहता नहीं हूँ ,

लेकिन हाँ ,
अब मैं रोता नहीं हूँ ,

~ निखिल ओझा

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mai rota nhi hu..
kuch batein hai
bas mai kehta nhi hu.

wo kya hai na,
tumhe thoda jaldi thi jane ki.

Ye waqt bhi aa jata ek din or rukk ke,
Bhala kya jarurat thi pehle bahana banaane ki.

Buss wahi batein hai jo baki thi,
ab kahunga to shayad, wo badal jaengi,

Mai rota nhi hu..

Bas kabhi kabhi kuch gaane sun kar,
Yaad aa jate ho tm.

Phir ankhein nashe me doob kar,
Sari batein khangol deti hai.

Phir pta nhi kaise choti choti boonde,
ankhon se jhank rhi hoti hai,

Mai kahaniya soch rha hota hu,
Pta nhi sari kahaniyo me tumhari jaisi ek ladki aa jati hai,

Muskurata hu use dekh kar,
kuch gunguna bhi leta hu,
Lekin khtam hone ke baad us kahani ke,
ek khamoshi si reh jati hai,

Lekin mai rota nhi hu,
kuch batein hai,
bas mai kehta nhi hu…

Kuch gane hai ho mujhe behad pasand hai,
aur kyu pasand hai, iska koi jawab nhi,

Bas jab sunta hu,
to tumhe mehsus krne ke bahane dhoondta hu,

Mai wo gane dhoondta hu,
jo tumhari ankhon ki tarif se hoke,
tumhare har zikr ko bayan karte ho,

Mai wo bahane dhoondta hu,
Meri fikr se hoke jo tumhe azaad krte ho,

Jo bandisho me rehke tumhe aaj bhi apna aasman samjhta hai,
Mai wo pinjre me qaid ek panchi dhoondta hu,

Dhoondta hu roz is bahane,
ki kisi roz mulakat ho to muskurau,

Aur apna haal chupa lu usse,
Na use kuch batau,

Mai is tarah se kyu use dhoondta hu,
Mai is tarah se kyu use dhoondta hu…

Majboor ho jati hai ankhen khud se,
Bhar ke aansu itne sare, phir keh nhi paati kuch bhi mujhse,

Bass zidd karti rehti hai,
ki kab aazad ho jau in aasuon se,

Phir kuch boondein jhaak rhi hoti hai,
Kuch pooch rhi hoti hai pata tumhara, karne ke liye shikayat tumse,

Haan chubhti hai ye khamoshi tumhari,
Haan acha nhi lagta ab pehle jaisa,

Haan chubhti hai ye khamoshi tumhari,
Haan acha nhi lagta ab pehle jaisa,

Lekin mai rota nhi hu…
Kuch batein hai, bas mai kehta nhi hu…

Lekin haa,
ab mai rota nhi hu… (Nikhil Ojha)

Author: Onesha

She is the funny one! Has flair for drama, loves to write when happy! You might hate her first story, but maybe you’ll like the next. She is the master of words, but believes actions speak louder than words. 1sha Rastogi, founder of 1shablog.com.

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