रिमझिम

आज सुबह से हल्की हल्की फुहारें पड़ रही थी। मैं घर के बाहर अपने छज्जे पर पड़ती हुई रिमझिम को देखने लगी। आज पहली बार बाऱिश सूखी सी महसूस हो रही थी। कुछ दिनों से जुकाम के चलते, महक मेरी साँसों से रूठी हुई थी। आज न मिटटी की वो खुशबू आ रही थी, न ही बगल वाले घर से खाने बनने की भूख लगा देने वाली सुगंध।

बारिश के मौसम में चाय और पकौड़ी का आनंद ही अलग होता है। मैंने मौसम का लाभ लेने के लिए गर्मागर्म पकौड़ी खा तो ली पर जीभ पर स्वाद नदारद था ।

अपने कमरे में आकर, मैं खिड़की पर बारिश की बूँदें देख रही थी, तभी मेरी निगाह मेरे पसंदीदा इत्र पर चली गयी। इत्र की शीशी उठा कर मैं उसे देखने लगी और मुझे तुम्हारी याद हो आयी। जब तुमसे मिलने पहली बार मैं ऐसे ही सुहावने से मौसम में ये खूब सारा इत्र छिड़क के, अपने ऊपर आयी थी, की काश इस इत्र की खुशबू तुम्हारे रोम रोम में हमेशा के लिए रह जाये। इस इत्र को मैं सिर्फ तुमसे मिलने के लिए ही लगाया करती थी। पता नहीं तुम्हें इसकी सुगंध कैसी लगती है ?

मैंने इत्र खोला और मुझे कोई महक नहीं आयी , शायद तुम्हे भी नहीं आयी होगी कभी। मैंने अपने ऊपर इत्र लगाया और मेरी साँसों में कोई महक नहीं घुली। मैंने इत्र बंद करके रख दिया और जुकाम ठीक होने की दवाई खाकर लेट गयी। मुझे तुम्हारी याद हो आयी। पता नहीं कैसी है तुम्हारी याद, कब समय यूँ ही सोचते हुए बीत जाता है पता ही नहीं चलता। तुम्हारी बातों को याद करके मुझे अनायास ही हँसी हो आती है, तुम्हें सोच सोच के मुस्कुरा देना, तुम्हारी बातों को याद करके खुद में ही शरमाते रहना, ये सब कुछ अलग था और मैं पहली बार ये सब महसूस कर रही थी। तुम्हें देखे बिना काफी वक़्त गुज़र चुका था।

तुम्हे देखने के लिए ललयायित मैं, भागी चली जाती थी हर हफ्ते तुमसे मिलने, कोई न कोई बहाना लिए, बस तुम्हारी एक झलक पाने के लिए, तुम्हारे करीब आने के लिए, तुम्हे बताने के लिए की मैं तुम्हे कितना चाहती हूँ, पर बता नहीं पाती थी, और बस देखती ही रह जाती थी और अब महीने गुज़र जाते हैं, तुम्हारी यादों में। पता नहीं क्या मैं ही इस क़दर डूबी हुई हूँ इस एहसास में या तुम भी ऐसा कुछ महसूस करते हो?

ठंडी ठंडी हवा बह रही है और तुम्हारी बाँहों में आ जाने की इच्छा और तत्पर हुई जा रही है, की बस तुम्हे अपनी आगोश में भर लूँ , और देखती रहूं एकटक, जब तक ये मौसम न भर जाये, जब तक ये दिल न भर जाये, जब तक हर एक क़तरा तुम्हारा, मेरे प्यार से न भर जाये, तुम्हे छू लूँ कैसे इन होठों से अपने की, करीब आने की चाहत को थोड़ा आराम मिल जाये , मेरी इन तरसती धड़कनो को थोड़ा सुकून मिल जाये, तुम्हारी सोहबत में।

बारिश तेज़ होने लगी , मैंने अपनी छतरी निकाली और मैं नीचे की ओर जाने, लगी पेड़ों के पास , इस खुशनुमा मौसम का एहसास अपने अंदर भर लेने के लिए। मेरी छतरी सीढ़ी के रास्ते में फँस गयी और मुझे तुम्हारा वो भीगना याद हो आया। जब गाड़ी से निकलते हुए तुम हल्का सा भीग गए थे। मैं जैसे ही नीचे उतरी उस दिन की वो महक अचानक मेरी साँसों में घुल गयी। जैस्मिन जैसी लुभावनी। मैंने नीचे उतरते हुए दुबारा अपनी कलाई सूंघी और उस दिन की वो ही खुशबू मुझे पुनः आने लगी , आखिर मेरी साँसों में महक वापस घुलने लगी। मेरी खुशी का ठिकाना ही नहीं रहा।

तुम्हे याद करते हुए, मैं बारिश को देखते हुए छतरी पकड़े हुए मुस्काती ही रही। तुम्हारा चेहरा आँखों के सामने यूँ आगया जैसे कल की ही बात हो , वो जाते हुए तुम्हारी शरारती मुस्कान, मुझे तुम्हारे साथ बिताया हुआ हर एक पल बहुत याद आता है। न जाने कब तुम मुझसे मिलने आओगे ? पता नहीं आ भी पाओगे या नहीं ? एक ठंडी हवा का झोंका फ़िर से आकर मेरे रोम रोम में तुम्हारी प्यास जगा गया। आँखें बंद करते ही तुम्हारा हसीन चेहरा मेरी नज़रों में आगया।

तुम्हारे इंतज़ार में दिन बीत रहे हैं। मैं तुम्हारे बारे में सोचते हुए अंदर आगयी और तभी मेरा फ़ोन बज उठा , तुम्हारा ही था। जाने कैसे तुम्हे ख़बर हो गयी की मैं तुम्हे याद ही कर रही थी। तुम्हारी आवाज़ मीलों दूर से सुनकर जैसे की, इंतज़ार भरी तपिश में कुछ ठंडक पड़ गयी। मेरा मन तुमसे मिलने के लिए बेचैन हो रहा है।

तुम्हारी तस्वीरें देख कर लगता है की काश तुम हमेशा मेरे साथ ही रहते, तुम्हे इस तरह मुझसे दूर न जाना पड़ता। तुमसे बहुत लड़ने का मन करता है , मुझे इस तरह अकेले छोड़ कर क्यों चले जाते हो तुम , पर क्या करूं कुछ कर भी नहीं सकती मैं। केवल इंतज़ार ही कर रही हूँ , की आज घर के सामने गाड़ी रुकेगी, मैं घर का दरवाजा खोलूंगी और तुम सामने होंगे और मेरी खुशी का कोई ठिकाना नहीं होगा।

तुम्हारी यादों में। तुम्हारी . . . . . .

Author: Onesha

She is the funny one! Has flair for drama, loves to write when happy! You might hate her first story, but maybe you’ll like the next. She is the master of words, but believes actions speak louder than words. 1sha Rastogi, founder of 1shablog.com.

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