वही तुम हो,
वही मैं भी हूँ , फिर कैसी ये उदासी है ?
घने बादल हैं ,
ठंडी हवायें हैं , फिर भी ये धरती क्यों प्यासी है ?
तुम्हारा नाम बसा है ,
मन पर और इस तन पर, फिर कैसी ये जुदाई है ?
दिल का सौदा,
सच्चा है और खरा भी , फिर कैसी ये रुसवाई है ?
आँखों में बसे हो ,
मेरे दिल में रहते हो तुम ,फिर भी कैसी ये दूरी है?
पनाहों में रहने की ,
तेरी बाँहों की तलाश है, फिर कैसी ये मज़बूरी है ?
मेरे हो तुम,
मेरे ही रहोगे हरदम, फिर क्यों ये निगाहें तरसती है ?
मिलन की आस है ,
वो दिन भी पास है , फिर कैसी ये ग़लतफहमी हैं ?
तुम्हे पा लेने की ,
पाकर भी न पाने की , कैसी ये इश्क़ खुमारी है ?
सवाल है दिल में कई ,
सबके उत्तर भी हैं लिखे हुए, फिर भी कैसी ये नाराज़गी है ?
दर्द है आँखों में,
ज़ख्म है सीने पर, फिर भी कैसी ये जुबां पर खुशी है ?
आँखें नम है,
रुख़सार भी बहते हैं , कैसी ये तेरी बेहताशा कमी है ?
गहरी रात है,
चांदनी भरी, फिर क्यों ये आँखें भर आयी हैं ?
तुम यहीं हो ,
हर पल मेरे साथ , फिर क्यों तुम्हारी इतनी याद हो आयी है ?