नींद खुली और तुम मेरी बांहों में थी, निर्वस्त्र। तुम्हारे चेहरे पर आती ज़ुल्फ़ों की महक साँसों में घुलने लगी, तुम्हारे करीब आकर जुल्फें हटाकर तुम्हारा कमनीय चेहरा देखा, बहुत ही खूबसूरत लग रही थी। रेशम से बाल मेरी उँगलियों में से फिसल गए। तुम्हे अपनी ओर खींचा और तुम्हारे रुखसारों पर अपने होंठ रख दिए, चूमता ही रहा तुम्हे धीमे से। तुम्हारी नींद खुलने लगी , हलके से हाथ रख दिया तुम्हारे कानों पर, तुम्हे वापस सुला दिया। तुम्हे ढक दिया मैंने मखमली चादर से और तुम वापस निद्रामग्न हो गयी।
उठ कर मैंने कपड़े पहने और पिछली रात के हसीन समागम के बारे में सोचने लगा। तुम्हारे होठों पर वापस अपने होंठ रखने का, तुम्हे अपनी बाहों में रात भर सुलाने का ख़्वाब सजाये कबसे इंतज़ार कर रहा था। बहुत दिनों बाद मिलकर तुमसे आज बेचैनी कुछ कम हुई थी। रात भर तुम्हारे रोम रोम को अपने तन पर महसूस कर के मैं तुम्हारे मोहपाश में बंधा हुआ था।
तुमने शायद मुझसे कभी प्रेम किया ही नहीं था, तुम्हे तन का सुख देकर भी ये न बता सका की हर एक मेरी सांस पर तुम्हारा ही अधिकार है। तुम तरसती थी मिलन के लिए, मैं ही तुम्हे दूर कर देता था, क्या करता प्यार जो करता था कि जब तक तुमसे परिणय सूत्र में न बंध जाऊँ तुम्हे छू सकने का हक़ नहीं है मुझे।
तुम बहक जाती थी, मुझसे निवेदना भरी आँखों से कहती थी, मेरा हाथ थामे, मुझे कसकर पकड़े रहती थी की लिबास का ये जो पर्दा है ये भी गिर जाये, तुम्हारी खूबसूरती पर मोहित था। बहुत कोशिश करता था समझाने की तुम्हे, की चरम सुख ही प्रेम नहीं होता पर तुम्हारी इच्छा को सम्मान देते हुए तुम्हे आखिर कार भर ही लिया आगोश में अपनी, तुम्हे ज़िन्दगी की सबसे हसीन रात देने के लिए। संभाला तुम्हे मैंने, कोमल सी थी तुम , तन सुख पाकर बहुत खुश भी थी।
तुमसे मिलकर वापस आ गया अपनी नीरस सी ज़िन्दगी में, तुमने मुझसे बात करना कम सा कर दिया था, अब तुम मुझे उतना याद भी नहीं करती थी, वो बेताबी, वो बेसब्री सब छूट गया था, सालों का हमारा प्रेम सम्बन्ध अब चुकने सा लगा था। मैं इंतज़ार करता रहता था और तुम्हारे पास कोई न कोई बहाना होता था, मुझे दरकिनार कर देने का।
रोज़ तुमसे बात करने को बेचैन मैं, तड़पता रहता था कि अभी पूरा प्रेम कर भी नहीं पाया हूँ। जिस दिन पूरी मिलोगी जीवन की भरपूर खुशियाँ तुम्हे दूंगा। शायद लिखा ही नहीं था मेरा तुम्हारा एक हो जाना। मन एक हो जाये, ये जिस्म एक हो जाये पर प्यार के बंधन में किसी को बांध पाना ये नहीं हो सकता। तुम्हे अब किसी और की तलाश थी।
बहुत मनाया तुम्हे, सब कुछ न्यौछावर कर दिया तुम्हारे लिए, तुम्हारी हर चीज़ पाने की इच्छा, ये जग जीतने का जज़्बा, हर तुम्हारी ख़्वाहिश को अपनी प्राथना और दुआ बना लिया, कभी झगड़ा नहीं तुमसे, जैसे तुमने कहा वैसा किया , तुम्हारी हर अभिलाषा , हर सपने को सच करना चाहा। डुबो दिया खुद को काम में , की खुद को इतना काबिल बना सकूँ, की जिस चीज़ पर हाथ रख दो तुम, वो तुम्हारी। पर तुम्हे कुछ और मंज़ूर था , तुम्हे कोई और चाहिए था या सिर्फ मैं नहीं चाहिए था , मुझसे ही तुम्हे प्रेम नहीं था। सहारा था बस में तुम्हारा , मात्र एक और रास्ते का कांटा , तुम्हारे अकेलेपन का साथी।
धीरे धीरे दूरियां बढ़ रही थी। तुम्हारी याद सुबह शाम सताती ही रहती थी , हर सुबह तुम्हारी आवाज़ सुने बिना मेरा सवेरा नहीं होता था। तुम्हारा वक़्त बेशकीमती हुआ जा रहा था। मेरा बेशुमार इश्क़ जैसे तुम भूल गयी थी।
खुद को समझा भी नहीं पा रहा था और तुम्हे यकीन भी नहीं दिला पा रहा था। पुराने पल ही याद आ जाते तुम्हे इसी आस में ज़िंदा था। पर तुम कबका भूल चुकी थी मुझे , मैं ही अकेला रह गया था इस सफर में।
आज एक दोस्त की बहन की शादी में आया हूँ। तुम्हारे संग जीवन भर साथ रहने की , तुमसे प्यार करने की हमेशा… मैंने कसम खायी थी। दिल भर आया अचानक। तुम अक्सर मुझसे कहा करती थी
“प्रशांत, मुझे भी तुम इस तरह शादी के जोड़े में देखोगे तो क्या तुम्हारी भी आँखें अश्रुपूरित हो जाएँगी “
-“वह बहुत खुशी का पल होगा मेरे लिए , शायद हो जाएँगी ” तुमसे होंठ मिलाते हुए कहा था मैंने।
“तुम बदल तो नहीं जाओगे न ?” तुम अपना सर मेरे कंधे पर टिका कर बोली
-“कभी भी नहीं। तुम्हारा ही रहूँगा सुमेधा चाहे तुम छोड़ भी दो मुझे । कोई विकल्प होगा की मरने के बाद भी तुम्हे चुन सकूँ तो तुम्हारे सिवा कोई और नहीं होगी, न हो सकेगी। ” तुम्हारी आँखों में देखते हुए मैंने कहा था।
गले लग कर मेरे तुम खूब रोई थी। तुम्हे चुप करता रहा, आश्वासन देता रहा , तुमसे बहुत देर तक प्यार करता रहा , तुम्हे हंसाता रहा।
दुल्हन सी सुन्दर सजी गौरी को आते देख शादी के लाल जोड़े में, मुझे तुम्हारा चेहरा याद आने लगा। अविरल आँसू बहने लगे, बहुत याद आयी तुम्हारी, वरमाला भी हो गयी… और देख नहीं पाया। मण्डप के बाहर आकर अपने दिल पर, उसकी सादगी पर, अपने निश्छल प्यार पर तरसा सा मैं रोने लगा, रोता ही रहा। काश के कोई मुझे उठा दे, ये बुरा सा स्वप्न हो। या मेरे इस शरीर से मेरे प्राण निकाल दे कि तुम्हारे बिना मेरा कोई अस्तित्व नहीं, मैं अधूरा हूँ तुम्हारे बिना, तड़प तड़प के रोता रहा, की तुमने मुझे छोड़ दिया, किसी और को चुन लिया, आखिर क्यों ? क्या कमी थी मुझमे, ऐसा क्या था उसमे जो मैं नहीं दे सकता था तुम्हे, क्या शिकायत थी तुम्हे मुझसे, एक बार कह कर तो देखती।
व्याकुल सा तुम्हारी मेरी तस्वीरें देखने लगा। इसी आस में की अभी सब कुछ बदल जाएगा, सब ठीक हो जाएगा और शायद तुम वापस मेरे पास आ जाओगी।
मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ सुमेधा, पहला प्यार थी तुम मेरा, इस जनम तो तुम्हे अपना सनम नहीं बना सका। पर अगले जनम मिलना और ऐसे ही तड़पना मेरे लिए जैसे मैं तड़पा हूँ तुम्हारे लिए। हमेशा के लिए इस संसार से चले जाने को जी चाहता है। तुमसे ऐसे ही बेपनाह इश्क़ करता रहूँगा। जहाँ भी रहूँगा , जैसे भी रहूँगा तुम्हारा ही रहूँगा। मरते दम तक , आखिरी साँस तक तुमसे ही प्रेम करता रहूँगा।