सांझ ढलने लगी और मेरे मन में तुम्हारे लिए सम्मान गहराती हुई रात सा गहरा होने लगा। सूर्य की अस्त होती किरणें आसमान में सुरीला सा सँगीत गुनगुना रही थी। तुम्हारी हर अदा पर पल पल मेरा मन ठहरता जा रहा था। जैसे ही मैं सोचती इससे ज्यादा और क्या तरंगें होती होंगी प्यार के इंद्रधनुष में, तभी आकर एक और रंग इस सतरँगी क्रीड़ा का हिस्सा बन जाता था ।
तुम्हारी आँखों में अपने लिए प्यार देखने के लिए लालायित मैं कुछ और ही मनोभाव देख कर अपने इश्क़ पर नाज़ कर रही थी ।
तुम्हारे साथ उस प्रेम दिवस के शामोत्सव में मुझे पिछली रात की याद हो आई, और होठों पर अनायास ही मुस्कान उभर आयी, तुम्हारे हाथ थामे जैसे छोड़ने का मन ही नहीं हो रहा था,
एक गाने के लफ्ज़ याद हो आये
…..की अभी न जाओ छोड़ कर की ये दिल अभी भरा नहीं। हाथ थामे सोच में डूबी रही, गले लग जाने की उत्कंठा में कुछ अटपटा कर बैठी और रात्रि पहर तक पछताने लगी।
दिल दिमाग से तेज़ चल रहा था और कुछ भी दिल से आगे नहीं जा पा रहा था। क्यों तुम्हे छोड़ कर यूँ जाना पड़ता है, हमेशा के लिए जेब में भर लूँ तुम्हे, दो पल खुशी की तरह। आँखों में कैद कर लूँ तुम्हे इस तरह की जब भी तुम सामने न हो तो बस तुम्हारा ही अक्स दिखे।
तुम्हारी बाँहों में रातें गुज़ारने की ख्वाहिशें बढ़ रही थी बेहताशा। तुम्हारी ही यादों में रात गुज़र गयी।
पिछली रात की यादों से बाहर आयी और मेरी आँखों तुम्हारी ओर केंद्रित हो गयी, तुम्हारी नज़रे शाम होती उन गलियों में आते जाते मुसाफिरों पर, हलकी रौशनी लिए सड़कों पर थी। तुम मगन थे अपनी ही किसी दुनिया में, तुम्हे देखती ही रही बहुत देर तक।तुम्हारी हल्की सी मुस्कराहट देख कर मुझे एक पहर पहले का तुम्हारा चेहरा याद हो आया।
दिल की धड़कने कुछ समय पहले के पलों में चली गयी, तन पर वस्त्र का ऐसा साज बिछा की एक ओर तन का भेद खुला और तुमने नज़रें फेर ली। ये कैसी मृगतृष्णा है, ये तुम्हारा ही तन है, तुम्हारा ही मन है, सब सौंप दिया है तुम्हे ही, फिर भी नज़रों में ये कैसी शिष्टता है। तुम्हारी शालीनता को देखकर मन में तुम्हारे लिए लगाव और बढ़ गया, एक और रंग जुड़ गया इस इंद्रधनुष में।
रेशम सा ख़्वाब तन पर सज गया दुबारा और तुम्हारी आँखों में तुम्हारे दिल को धड़कता देख जैसे मानो मुझे लगा,ये नए जज्बात कैसे हैं, ये कहाँ से आएं हैं, क्या अभिप्राय है इस नए एहसास का, ऐसा पहले नहीं देखा तुम्हारी नज़रों में ? उस एक क्षण में जब तुम्हरी नज़रों के बदले भाव देख कर मुझे लगा, क्या यही था जो मैं ढूंढ़ रही थी ? क्या यही प्रेम की मंज़िल है ? क्या यही है जो मुझे पाना था ?
मेरी सोच पर तुम्हारा ही अधिकार होता जा रहा था, मेरी विचारों की श्रृंखला हमारे अगले पड़ाव आने पर टूट गयी। तुम्हारे पीछे चल पड़ी मैं और तुम अपने लिए परिधान देख रहे थे। मेरी नज़रे तुम्हारा मुआयना कर रही थी, एक चुन कर तुम पहनने चले गए। तुम्हारा इंतज़ार करने लगी मैं बेसब्र हो कर।
तुम करीने से तैयार होकर मेरे सामने आये और जैसे मानो मेरा दिल धड़कना भूल गया हो। दिल आँखों में उतर आया और एक टक देखने लगा तुम्हे, सज गए तुम, अभी तक नहीं भूल पायी तुम्हारा चेहरा, जैसे पलकों और नज़रों पर प्रेम का, तुम्हारे उस आवरण का चित्र सज गया हो और तुम्हारा ही एकाधिकार हो गया हो। जैसे हर एक एहसास में तुम्हारे नाम का रियाज़ हो गया हो। रूह का हर एक कतरा जैसे तुम्हारा स्पंदन करना चाहता हो।
हाल बेहाल हो गया मन और दिमाग भी जैसे दिल के रुआब में बह गया। तुम्हे अपना बना लेने की इतनी इच्छा और अभिलाषा शायद इससे पहले कभी जगी ही नहीं थी।
किसी तरह इसी पल तुम्हारे हर पल पर अपना हक़ करलूँ , और तुम्हारी हर एक साँस पर अपना नाम लिखदूँ , कह दूँ तुमसे कि बस मेरे हो तुम और मेरे ही रहना, तुझे आँखें भर के देख लूँ, और बस देखती ही रहुँ।ये कैसी चाहना है, ये कैसा असीम स्नेह है तुमसे जो बढ़ता ही जा रहा है ? कहाँ जाकर अंत होगा इसका ? होगा भी या नहीं ?
विचारों में प्रेम ही प्रेम उमड़ पड़ा तुम्हारे लिए, प्रेम दरिया में डूब रही थी, तुम्ही ने बाहर निकाला मुझे, तुम्हारी मस्ती भरी आंखें आईने में देखी और ये दिल बेक़रार सा हो गया। जैसे इसी पल अपनी बाँहों में भी खींच लो मुझे, तुम्हे अपनी दिल की धड़कनें सुना दूँ। तुम्हारे ही नाम का छल्ला आजीवन इन उँगलियों पर सजा दूँ। तुम्हारा नाम अपने इन हाथों पर गुदवा लूँ।
तुम्हारे चेहरे को, तुम्हारी इन प्यारी आँखों को बस यूँ ही देखने को जी चाहता है, जब तक सुकून न आ जाये, इस दिल की धड़कने थम न जाये, तुम्हारी आँखों की वो चमक जब तक मेरी रूह में न समा जाये, तब तक तुम्हे देखने को जी चाहता है। तुम्हारी बातों की मीठी खुशबू लिए तुम्हारे साथ चल पड़ी अनजान सफर की ओर की इस राह में मेरा हाथ थाम लेना जब भी वो दिन आएगा और मेरे साथ मुझमे ऐसे मिल जाना जैसे कभी बिछड़े ही नहीं थे , जैसे कभी रूठे ही नहीं थे, जैसे कभी खोये ही नहीं थे। इतनी लगन लगा लेना मुझसे की हर एक मुसाफिर को उसकी मंज़िल मिल जाये और हर राधा को उसका कृष्ण ।