विमर्श । नाम सुनकर मेरे मन में अनजानी सी उलझन हो गयी । विमर्श राजदान । मैंने माँ के कमरे से जाने के बाद फोटो देखा ।
पिछले कुछ दिनों से माँ मुझसे किसी लड़के से मिलने की ज़िद कर रही थी । मैंने आव देखा न ताव, अपना मुँह फेर लिया , मैं अकेली ही काफी हूँ , मुझे नहीं है ज़रूरत किसी भी इंसान की, जब लगेगा शादी कर लेनी चाहिए , मैं कह दूँगी आपसे । माँ मुझे मनाती रही और आज आकर बड़े प्यार से बोली
“एक बार देख ले । मैं शादी करने को नहीं कह रही , फोटो तो देख ले । बड़ा ही सुन्दर लड़का है । नाम भी अच्छा है विमर्श । “
सच में बड़ा ही सुन्दर फोटो था, जैसे मन मोहने के लिए ही खिंचवाया गया हो ।
मैंने फेसबुक खोला और विमर्श राजदान नाम के सारे लड़को को एक एक कर के देखना शुरू कर दिया । बड़ी देर ढूँढ़ने के बाद मुझे तुम मिले । फोटो एक नंबर थी प्रोफाइल पर । जीवनसाथी चुनने के लिए भी, न जाने कितनी फोटो खिंचवाई होंगी तुमने, तुम्हारा प्यारा सा चेहरा देख कर मुझे दया आगयी । मैंने सोचा मिलते हैं और माँ को हाँ कह दिया ।
माँ तो ऐसी उछली जैसे मैंने शादी के लिए हाँ कर दी हो । माँ ने तुम्हारे घरवालों को न्यौता दे दिया अगले सप्ताह हमारे घर आने का । पर मैं मनचली तुमसे पहले ही मिलना चाहती थी अकेले में, आधुनिक वस्त्रों में । मैंने तुम्हे फ्रेंड रिक्वेस्ट भेज दी ।
तुमने चंद ही मिनटों में मुझे मैसेज भी कर दिये “कैसी हैं आप ? मैं तो बस आपका ही इंतज़ार कर रहा था । “
अरे अरे अरे , यह क्या महाशय पहले से ही तैयार बैठे हैं। बस अभी ही जयमाला हो जाये । एक तरफ माँ हैं और एक तरफ तुम , अलग ही अंदाज़ में , मुझे हँसी आगयी ।
“आप कॉफ़ी के लिए कल मिल सकते हैं ?” मैंने पूछा ।
“जी क्यों नहीं , आप कहाँ आना पसंद करेंगी? मैं पिक कर लेता हूँ आपको । ” यह क्या अभी तो बस मैंने मिलने का पूछा है, और आप दामाद बन रहे हैं विमर्श जी ।
“कल शाम 5 बजे मिलते हैं , कॉफ़ी डेस्टिनेशन पर । ” मैंने बोला ।
“जी , मैं इंतज़ार करूँगा , आप मुझे इस नंबर पर कॉल कर सकती हैं….” मैंने नंबर अपने फ़ोन में डाल लिया ।
अगले दिन शाम 5 बजे
माँ को ऑफिस का काम बोलकर मैं तुमसे मिलने के लिए निकल गयी । मैंने अत्याधुनिक वस्त्र पहने , खूब सारा इत्र छिड़क कर , सबसे ऊँची हील पहन कर मैंने खुद को एक दफा शीशे में निहारा की तुम्हारा मुँह खुला का खुला रह जाये ।
मैं कॉफ़ी डेस्टिनेशन पर पहुँची ही थी की तुम मुझे सामने ही इंतज़ार करते दिख गए । काले रंग के सनग्लासेस और हाथ में आई फ़ोन लिए किसी से बात कर रहे थे । असल में तुम जितने प्यारे फोटो में दिख रहे थे उससे कही ज्यादा स्मार्ट नज़र आ रहे थे । तुम्हे चौंकाने के चक्कर में मैं तुम्हे देखकर चौंक गयी । तुमने मुझे दूर से ही इशारा कर दिया और मैं तुम्हारी तरफ बढ़ चली ।
तुम दिखावटी से लगे मुझे ।
“आने में कोई दिक्कत तो नहीं हुई देविना जी आपको ?” तुमने बड़ी ही मीठी आवाज़ में मुझसे बोला।
तुम्हारी आँखों में अपने लिए प्रशंसात्मक भाव देखकर मेरे चेहरे पर मुस्कराहट आ गयी । आखिरकार तुम्हे फर्क तो पड़ा, थोड़ा ही सही ।
तुमने मेरे अंदर कॉफ़ी शॉप में जाने के लिए दरवाज़ा खोला । तुम्हारी कातिलाना मुस्कान, जो की तुम मुझे बार बार मार रहे थे । बोलते हुए तुम्हारे गालों पर डिंपल पड़ रहे थे , मैं तुम्हे देखकर हैरान थी । ऐसा सुन्दर चेहरा, कैसे कोई नहीं रीझा तुम पर या ये कोई चाल है ?
“देविना जी , आप क्या लेंगी?” बड़े ही मधुर ढ़ँग से तुमने मुझसे पूछा।
मैंने अपना आर्डर दिया और तुमने भी वही दोहरा दिया । “जो मैम लेंगी , मेक इट टू । “
“तो विमर्श जी , थोड़ा विचार विमर्श कर लिया जाए।” मेरे इतना कहते ही खिलखिला कर हँस पड़े तुम ।
“जी ज़रूर, बताइये क्या जानने की इच्छा है आपकी ?” बड़े ही सहज ढ़ँग से पूछा तुमने ।
“जो भी आप बता दें । ” मैंने तुम्हारी भूरी आँखों में देखते हुए कहा । जहरीली आँखें थी तुम्हारी, सब कुछ पढ़ रही थी , किसी को अपना बना लेने की कशिश लिए वो आँखें मेरा मुआयना भी कर रही थी और मुझे तुम्हारी ओर खींच भी रही थी ।
“आपकी माँ ने वैसे तो हम सभी को बुलाया है आपसे मिलने के लिए घर, पर ऐसे मिलना ज्यादा सुविधापूर्ण है।” तुमने जैसे मेरी तारीफ़ करते हुए कहा।
“क्यों ?” मैंने तुम्हे निहारने लगी ।
“ज्यादा बेहतर जान पाएंगे एक दूसरे को। ” तुमने मुझसे आँखें मिलाते हुए बोला ।
“मुझे तो जानना ही नहीं है आपको।” मैंने उसकी शर्ट के खुले बटन की ओर देखते हुए कहा।
“अच्छा तो आप विचार विमर्श करेंगी। ” तुम्हारा मज़ाक बेकार था पर मुझे हंसी आगयी।
“नहीं तो कहिये क्या आप घूमने चलेंगी मेरे साथ कॉफ़ी के बाद? ” तुमने बड़ी ही उम्मीद भरी नज़रों से मुझसे सवाल किया ।
“विमर्श जी , नारी से कभी सवाल नहीं किये जाते । ” मैंने अपनी कॉफ़ी पीते हुए कहा ।
“देविना जी , कॉफ़ी के बाद आपको घुमाने ले चलता हूँ । ” तुम समझ गए मेरे शब्दों को । मैंने मन ही मन मुस्काते हुए हामी भर दी।
कॉफ़ी के बाद तुम मुझे ले गए वो हसीन शाम और हसीन बनाने के लिए, झील किनारे, सारा आसमान सूर्य की अस्त होती किरणों से भरपूर, गुलाबी सा हो चला था। झील किनारे हम दोनों चलते रहे , तुम मुझे अपने बारे में बताते रहे , तुम्हारे जीवन के मजेदार किस्से सुनकर मुझे अलग ही रोमांच हो रहा था । दिलचस्प किस्म के थे तुम।
शाम कब रात में बदल गयी और झील किनारे कब जगमगाहट हो गयी , तुम्हारी बातों में मुझे पता ही नहीं चला।
तुम्हारी ओर देखा मैंने, तुम्हारी आँखों में भाव बदल चुके थे, उनमे मुझे अपने लिए अपनापन दिखने लगा। हम घर की ओर चल पड़े, तुम्हारी मधुर आवाज़ में और अल्फ़ाज़ में प्रेम छलक रहा था ।
घर से विदा लेते हुए, तुम्हारी आँखों में खुशी थी, और मेरी आँखों में तुम। मुझे लगा ही नहीं कभी किसी की ज़रूरत है मुझे, पर तुम होंगे तो अच्छा भी महसूस कर सकती हूँ मैं। तुम्हारा आना भी ठीक ही है, ज़िन्दगी में कोई कमी तो नहीं थी पर खुशनुमा भी हो सकती है।
बाकी की रात भी तुम्हारे ही ख्यालों में बीत गयी। देविना विमर्श राजदान।