सोचा करता था अक्सर मैं, किसकी बनोगी तुम, कौन बाँध सकेगा तुम्हें , किस के लिए झुकोगी तुम ? इतनी ऊँची उड़ान भरने की चाहत लिए, अपने पंख जीवन के किसी न किसी मोड़ पर आकर तुम्हें समेटने ही होंगे । ये नश्वर संसार कभी न कभी तो तुम्हें कचोटेगा। तब शायद तुम्हें मेरी याद ज़रूर आएगी । एक मैं ही तो था तुम्हारा, बिन कहे , हमेशा की तरह तुम्हारा और सिर्फ तुम्हारा बिना किसी अपेक्षा के, बिना तुम से यह उम्मीद करे की तुम बस मुझे अपने दो पल दे दो ।
चुम्बक की तरह मेरे जीवन में आकर, मुझे अपना बनाकर, अपनी ऊंचाइयों की सीढ़ी चढ़ कर , तुम्हे एक बार भी मेरा ख़्याल नहीं आया । मैं निष्काम भाव से तुमसे प्रेम करता रहा, जानता रहा तुम्हारे लिए सिर्फ एक मोहरा मात्र हूँ । फिर भी मैंने तुमसे कुछ नहीं माँगा सिवाय तुम्हारे साथ के जो तुम और लोगों को आसानी से दे दिया करती थी ।
शायद मुझमे ही थी कुछ कमी, या मैं तुम्हारे लिए कबका खत्म हो चुका था । तुम्हारे जीवन का एक पन्ना मात्र रह गया था । आज भी याद है मुझे वो दिन जब तुम परेशान सी इधर उधर घूम रही थी । तुम्हारे मासूम से चेहरे को देख कर मुझे तरस आगया ।मैं रोज़ हज़ारों चेहरे देखता हूँ , कभी मुझपर असर नहीं हुआ । तुम्हारे पास ऐसा क्या था की काबू खो बैठा मैं ? जाने अनजाने सब कर बैठा जो तुम बोलती गयी ।
तुम्हारे मेरे मिलने का सिलसिला चलता रहा, मेरी शामें हसीन और रातें रंगीन हो गयी । हर सुबह तुम्हारा चेहरा देखे बिना लगता ही नहीं था जैसे सवेरा हुआ हो । तुम्हें अपने आगोश में भर कर, तुम्हारे होठों को छू कर मेरी हर सुबह में तुमने अपनी रूह की जो महक मेरे मन में छोड़ दी थी, सह नहीं पाया था मैं जब तुम मुझसे आखिरी बार मिलने आयी थी ।
तुम आयी और हवा के झोंके की तरह बढ़ चली अपनी राहों की ओर । म्लान होगया मैं । हरसंभव प्रयास किया तुम मेरे जीवन में अपनी शर्तों पर वापस आजाओ । तुम्हारे लिए सारे समझौते करने के लिए मैं तैयार हो गया । पर जीत नहीं पाया तुम्हे । समझ नहीं पाया तुम्हे , तुम्हे वो सब दे दिया मैंने , जिसकी तुम्हें चाहत थी । पर फिर भी तुम्हे अपना नहीं बना सका ।
शायद रहे होंगे मेरे जैसे कई, तुम्हारे ख्वाबों में , तुम्हे अपना बनाने में, तुम्हे दुनिया दिखाने में । तुम्हे हर वो चीज़ चाहिए थी जो तुम्हारी नहीं थी । अपना अक्स हर किसी में छोड़ कर तुम जो सबके दिल तोड़ दिया करती थी ये सोच कर , कि दुनिया में हर चीज का स्वाद चख लूँ मैं, वो सब कुछ हासिल कर लूँ , जो कभी कोई नहीं कर सका । अपना सब कुछ देकर भी न पा सका तुम्हे । तुम सिर्फ अपनी मंज़िल पाने की चाह में लोगों को रौंदती गयी । तुम्हे लगता था तुम अकेली ही काफी हो । तुम सब कुछ थी ।
वो मुकाम हासिल कर ही गयी जहाँ पहुंचना चाहती थी तुम, मेरे साथ भी रहती तो भी पहुँच ही जाती , जरा देर से ही सही । पर अपना रास्ता खुद ही चुना था तुमने , खुद ही बनाया , पर एक बार पीछे मुड़कर तो देखती । तुम अकेली नहीं थी कभी भी , ये मुकाम तुम्हारा अपना नहीं , किसी और का भी हक़ है इस पर । पर मैं किसी से कहूंगा नहीं , इसी आस में की तुम एक दिन समझ जाओगी , या शायद समझती भी होंगी , एक न एक दिन तुम वापस ज़रूर आओगी , इन्ही बाँहों की तलाश में जहाँ सही गलत बताने वाला कोई नहीं होगा । सिर्फ मैं होऊंगा , तुम्हे सुकून देने के लिए , तुम्हारे आँसू पोंछने के लिए, तुम्हे समेटने के लिए , तुम्हे पूर्ण करने के लिए ।