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खुशी

सुलक्षण को घर के बाहर परेशान देख कर मुझे उस की पीड़ा पर तरस हो आया ।

सुलक्षण के यहाँ वर्षों बीत गए पर कोई किलकारी नहीं गूँजी । सुलक्षण की पत्नी इंदु, अपनी सास के ताने सुन कर परेशान रहती थी बड़े भईया के दोनों बच्चे चुन्नी और ओम हँसते खिलखिलाते हुए पूरे घर में चहल पहल मचाये रखते थे बच्चों की हँसी, सास का प्यार बड़ी भाभी को मिलते देख, इंदु को बड़ा ही दुःख होता था पूरी तरह से सास ससुर की सेवा में लीन, पति प्रिया इंदु भगवान से प्राथना करते करते अब थक चुकी थी

ससुर जी छोटे पोते पोती का मुँह देखने की आस लिए ही चल बसे इंदु और सुलक्षण की सास के रोज़मर्रा के झगड़ों से तंग आकर बड़ी भाभी ने बँटवारे की बात छेड़ दी

“सुनो बच्चे बड़े हो रहे हैं ऐसे ही माहौल रहा तो क्या असर पड़ेगा उनपर अब बच्चों को पढ़ाना भी है पिताजी तो चल बसे आधी आधी संपत्ति बाँट कर यहाँ दो बच्चों की परवरिश करना आसान काम थोड़ी है

बड़ी भाभी की बड़े भइया से हो रही बात सुनकर इंदु दरवाजे पर कान लगाकर सुनने लगी

“इंदु के तो बच्चा भी नहीं, ऐसे थोड़ी वसीयत लिखी जाती है इन लोगों का क्या हक़ चुन्नी की शादी करनी होगी आगे, कैसे करेंगे? छोटे भइया से थोड़ी माँगेंगे? छोटे भैया राज़ी भी हुए तो इंदु की ही बात मानेंगे ” अपने लिए ऐसे कटु वचन सुनकर इंदु का पारा चढ़ गया

घर में खूब कहासुनी हुई, कर्कश शब्दों का जैसे मेला सा चल पड़ा इंदु बहुत रोई घर में दरार पड़ गयी एक ही छत के नीचे दो मकान हो गये बड़े भइया ने अपना किवाड़ अलग कर लिया बड़ी भाभी ने सास को तरेरी दिखाते हुए, बच्चों की पढ़ाई और परवरिश का तकादा करते हुए कन्नी काट ली

“दो बच्चे और हम दोनों, फिर आप माँ जी, बताइये कैसे रहेंगे ? बच्चे आपके लाड़ प्यार में पढ़ते भी नहीं है, और कौनसा कहीं दूर हो गये हैं माँजी, आप इंदु के पास ही रहो , बच्चे आ जाएंगे आपके पास

इंदु सास की मन से सेवा करती फिर भी दिल नहीं जीत पायी उनके लिए उनकी प्यारी बहु सुमित्रा ही थी कई साल गुज़र गए बच्चे बड़े होने लगे इंदु को अब अपने खून की कमी खलने लगी कभी कभी दिल बहलाने के लिए बच्चों को ममता भरी नज़रों से देख लेती थी बच्चे चाची से स्नेह नहीं करते थे चाची तो अपनी लगी ही नहीं कभी

रोज़ाना की तरह अपने काम में लीन इंदु, कपड़े इस्त्री करने लगी सुबह से सांझ तक कोयला गरम कर के घर के दरवाज़े पर कपड़े इस्त्री करने का काम किया करती थी सुबह सुबह घूमते हुए मैंने देखा इंदु बड़ी ही तल्लीनता से कपड़े इस्त्री कर रही थी किसी बच्चे के स्कूल के कपड़े थे संजीदा सा माहौल रहने लगा था अब

दिन गुज़रने लगे, इंदु को दिन भर मेहनत करते देख, मेरे मन से उसके लिए उसकी खुशी की दुआ निकलने लगी खुश नहीं थी इंदु , खुद को काम मे झोंक दिया था उसने सास से आये दिन कहासुनी अब आम हो गयी थी

कुछ दिन बाद दिवाली थी, हर साल की तरह बेरौनक पर मैंने देखा की इंदु बड़े ही मन से घर की साज सज्जा में लगी हुई थी सुलक्षण और इंदु मिलकर ही खुद घर का कायाकल्प करने में लगे हुए थे हल्के हरे रंग से घर की दीवारों को रंग दिया था दोनों ने घर की देख रेख और इस्त्री का काम दोनों सुलक्षण और इंदु आजकल मिलकर कर रहे थे

मुझे बड़ी ही खुशी हुई घर सज गया, इस बार दिवाली की रौशनी दिवाली के पश्चात भी लगी रही पूरे मनोयोग से आजकल मैं सुलक्षण और इंदु को काम करते देख रही थी उनकी खुशी की कामना करते हुए मैंने मन ही मन उन्हें आशीर्वाद दिया और अपनी लाठी उठाकर घर के अंदर चल पड़ी, पुराने दिनों की याद हो आयी, जब मैं ब्याह करके आयी थी और छोटा सा सुलक्षण मुझे देख रहा था। पाठशाला की सफ़ेद शर्ट और खाकी पतलून पहने हुआ था । कुछ सालों में सुलक्षण की छोटी बहन, बड़े भाई और सुलक्षण का भी विवाह हो गया ।

विवाह के बाद इंदु बड़े ही प्रेम से मेरे चरण स्पर्श कर प्रणाम कर गयी थी ।

सर्दी के दिन हो चले थे, मैं घर की छत पर बैठी धूप सेंक रही थी । सुलक्षण मेरे पास आया और बोला

“ताई, आज खाना हमारे यहीं खाइयो, मेरे घर बेटी आयी है ।” मैंने सुलक्षण को बहुत आशीर्वाद दिया ।

इंदु को आज वर्षों बाद खुश देखा, साड़ी पहन कर सबका स्वागत कर रही थी । गोद में बिटिया लेके अपनी सारी ममता दुलार उस पर न्यौछावर कर रही थी । एक छोटे से इस्त्री वाले परिवार में गोद ली हुई कन्या को जिस उत्साह से अपनाया मेरा दिल भर आया । इंदु की स्फूर्ति देखते ही बनती थी । उनके इस निर्णय को देखकर मेरी नज़रों में उनका मान सम्मान और बढ़ गया ।

आज इंदु बड़े ही प्यार से सबको खाना खिला रही थी । भगवान ने उसकी प्राथना स्वीकार कर ली थी । अपनी बिटिया का मुँह दिखाने मेरे पास आयी और बोली

“ताई क्या नाम रखूँ गुड़िया का ।”

मेरे मन से एक ही शब्द निकला

“खुशी।” आँखों में चमक लिए इंदु आज अपनी खुशी को निहार रही थी ।

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