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ख़त

वो पहली बार जब तुमसे मिलने का बहाना ढूंढते हुए ,

मैं अपने घर से तुम्हारे घर की ओर आयी ,

और बिना मिले चली गयी ।

वो पहली बार तुमसे कुछ कहने की चाहत में ,

मैंने कुछ शब्द संजोये होठों पर ,

और बिना कहे चली गयी ।

वो पहली बार तुम्हारे करीब आने की कोशिश में ,

जब मैंने तुमसे पढ़ने के लिए किताब माँगी ,

और बिना पास आए चली गयी ।

वो पहली बार जब दिल के जज्बातों को कहने के लिए ,

मैंने कलम उठायी खत लिखने को ,

और बिना लिखे रह गयी ।

वो पहली बार जब ख़त लिखा तुम्हें ,

बढ़ी ख्वाहिशों से तुम्हें देने आयी,

और बिना दिए रह गयी ।

वो पहली बार जब हौसला रख कर ख़त दिया तुम्हें,

तुम्हारे प्रत्युत्तर के इंतज़ार में ,

और तुमसे बिना सुने ही रह गयी ।

वो पहली बार जब तुमने देखा मुझे,

और देख कर भी अनदेखा कर दिया मुझे ,

दर्द के आंसू सीने में ही छुपा के रह गयी ।

वो पहली बार जब दिल का हाल बयान किया तुम्हें,

और तुम्हारे कड़वे शब्दों को सुनकर,

मैं पूरी तरह से टूट कर बिखर गयी ।

मेरा हर एक पल बढ़ता गया प्यार में,

और तुम्हारे नज़रों अंदाज़ में ,

पर मेरी ये प्रेम कहानी अधूरी ही रह गयी ।

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