सुकून

आदत से मजबूर मेरे कदम उनकी मेज़ की ओर बढ़ गए । मैं ठिठक कर रुक गया और अपने हाथ में टिफ़िन बॉक्स लिए सोचने लगा, इतने दिन हो गए मैडम निमृत को गए । ये कैसे आज अचानक उनकी तरफ़ कदम यूँ बढ़ चले?

मैंने टिफ़िन को देखा, अपना चश्मा सही किया और रोज़ाना की तरह भूगोल पढ़ाने वाले मेरे मित्र शशि को ढूंढने लगा । शायद आज स्कूल की छुट्टी पर थे । मैं अकेले ही लंच करने कैंटीन में चला गया ।

आज निमृत मैडम की याद हो आयी, साथ में खाना खाया करते थे मैडम और मैं, अकसर बच्चों को पढ़ाने के बाद चाय भी पी लिया करते थे । कौर मुँह में डाला ही था की सौम्या मैडम आकर सामने बैठ गयी ।

“क्या बात है सर आज अकेले अकेले ?” मुस्कुरा कर बोली । सौम्या मैडम दिमाग की तेज़ और गणित पढ़ाया करती थी ।

“जी आज सर छुट्टी कर गए, तो अकेले ही हो लिया ।” मैंने शशि को न आने के लिए मन ही मन धन्यवाद दिया ।

“आज मेरे साथ भी यही हुआ । न तो आज प्रिया मैडम आयी न अनुजा मैडम । आज तीन क्लास लेनी पड़ी ।” अपना टिफ़िन खोलते हुए सौम्या बोली ।

“आज तो मेरी भी ड्यूटी चल रही है मैडम जी, बच्चे इतिहास ही पढ़ रहे हैं , पर एक बात नहीं समझ आयी आज छुट्टी पर क्यों हैं सब ?” मैंने सौम्या की और देखते हुए बोला ।

“पता नहीं सर, नहीं तो हम भी छुट्टी ले लिए होते ।” दोंनो हँस पड़े ।

“सर, आपका टिफ़िन तो लज़ीज़ दिख रहा है, वाइफ ने बनाया है लगता है ।” सौम्या की बात खत्म होती इससे पहले मैंने अपना टिफ़िन उनके आगे रख दिया और बोला ,

“चख कर बताइये कैसा है ?”

सौम्या ने थोड़ा सा लिया और बोली “सौ में से सौ नंबर , लाज़वाब । “

“मैंने बनाया है ।” मैं खुद पर नाज़ करते हुए बोला ।

“क्या बात है सर, इतिहास पढ़ाने के अलावा सभी काम अच्छे से कर लेते हैं सर ।” सौम्या मैडम दिखने में कतई तेज़ लगती थी , मुझे डर भी लगता था उनसे , की जिस गति से डांट डपट करती हैं , कहीं एक दिन हम भी न धरे जाएँ । सो हम केवल निमृत मैडम के संग ही रहा करते थे ।

निमृत मैडम और हमारे चर्चे हुआ करते थे । सभी को लगता था निमृत मैडम हम पर फ़िदा हैं , क्या करें अब चीज़ ही ऐसी हैं हम, इतिहास के टीचर और शायर, कौन दूर रहेगा हमसे भला , खाना पकवान सब सही बना लेते थे , नित्य ही खिलाया करते थे सभी को, सौम्या मैडम को छोड़ कर ।

“शादी नहीं की अभी हमने ” मैं खाना खाते हुए बोला ।

“कोई बात नहीं सर, निमृत मैडम की हो गयी है, आपकी भी हो जाएगी ।”

“आप कब दे रही शादी का कार्ड मैडम ” मेरे मुँह से यूँ ही निकल पड़ा ।

“जब आप लज़ीज़ खाना हमे रोज़ खिलाएंगे , तो सोच लेंगे आपको भी बुला लेंगे ।” मैं सौम्या मैडम को देखने लगा ।

“आपको खाना खाने फिर घर आना पड़ेगा मैडम ।” सौम्या मुझे नटखट नज़रों से देखने लगी ।

“चलिए परीक्षित सर, बच्चे भी हमारी प्रतीक्षा में होंगे , अब हम चलते हैं ।” कहकर सौम्या मैडम चली गयी ।

मैं अकेला ही दिनभर भटकता रहा । निमृत मैडम जब तक साथ थी ऐसा कुछ लगा नहीं की अकेलापन है, कुछ महीने पहले उनकी शादी की ख़बर सबको मिली, तो भी कुछ मुझे महसूस नहीं हुआ । हम रोज़ाना पहले जैसे दोस्त की भांति ही रहे । पर शादी के उपरांत जब वो स्कूल छोड़ गयीं , तब मुझे उनकी कमी खलने लगी । खाने को साथ न कोई, न चाय को और न ही दिन भर, अब हम प्रिंसिपल मैडम के अनाप शनाप आर्डर और बच्चों की बातें कहें किससे ?

शशि सर के साथ मैंने उठना बैठना शुरू कर दिया , पर निमृत मैडम की याद इतना सताएगी ये मैंने नहीं सोचा था । आते जाते रहते हैं लोग मैंने ये सोच कर मन और कर लिया पर निमृत मैडम की छवि मानसपटल पर ऐसी अंकित हुई की गाहे बगाहे कुछ न कुछ करते हुए उनकी बड़ी याद आती थी ।

आज पहली दफा सौम्या मैडम से बात करके मुझे लगा , मैडम दिखती ख़डूस हैं, पर हँसमुख हैं ।

शाम हुई मैंने सौम्या मैडम को चाय के लिए पूछ लिया ।

“चलिए सर ।”

चाय का प्याला हाथ में लिए सौम्या ने मुझसे पूछा “निमृत मैडम के जाने के बाद वो हँसी चली गयी सर आपकी ।”

मैंने गला साफ़ करते हुए कहा “नहीं तो सौम्या …. आ मैडम ” अचकचा कर रुक गया ।

मैं हैरान था, ये केवल सौम्या मैडम को पता चल रहा था या सभी को महसूस हो रहा था ।

“कुछ चीज़ें होती हैं सर , कुछ कुछ होता है राहुल तुम नहीं समझोगे ।” फिल्मी डायलॉग मारते हुए नटखट बच्चे की तरह आंखें चमकने लगी सौम्या की ।

पर मजाक में ही सही उन्होंने दिल के तार छेड़ दिए मेरे ।

“याद तो आती ही है मैडम की, इतने समय साथ रहे उनके, सीखने को भी बहुत कुछ मिला । कोई रिश्ता नहीं था हमारा , जाने क्यों पर मैडम से लगाव था। प्यार मोहब्बत वाला नहीं , दोस्त भी नहीं, कैसे समझाए, मतलब आदत सी हो गयी थी मैडम की । ” मैं चाय पीता हुआ मैडम को याद करने लगा ।

सौम्या शांत थी ।

“मैंने कुछ किया नहीं मैडम के लिए , पर इतना स्नेह और अपनापन था मैडम के साथ में की मुझे लगा ही नहीं कभी दुनिया में ऐसा भी कोई रिश्ता होता है जहाँ बिना स्वार्थ के ये भावनायें बसती हैं ।”

सौम्या चाय की चुस्की लेते हुए बोली “कुछ चीज़ों को न समझा जाये न सर, तो ही ठीक रहता है । कुछ चीज़े जैसी होती हैं वैसी ही अच्छी लगती हैं ।”

मैंने सौम्या की तरफ देखा वो दूर कहीं शून्य में से बोलती दिखी जैसे कुछ याद कर रही हो । “क्या हुआ मैडम , आपको को भी हुआ है क्या बिना मोहब्बत वाला इश्क़ किसी से ।” दोनों हँस पड़े ।

“वाह सर वाह , बिना नम्बरों के गणित और बिना घटनाओं के इतिहास भी पढ़ा देंगे आप । क्या इश्क़ किया है आपने ।” मैं चाय पीता रहा, बड़ी देर तक सौम्या की बातों पर हँसता रहा ।

सौम्या मैडम चली गयी , मैंने चाय के पैसे देने के लिए जेब में पर्स निकाला तो निमृत मैडम की लिखी कुछ पंक्तियों का परचा निकल कर नीचे गिर गया ।

मैंने परचा उठाया , निमृत मैडम हिंदी पढ़ाया करती थी , मैं उन्हें अपनी शायरी सुनाता था , और वो अपनी लिखी कविता , ये एक अधूरी सी कविता उन्होंने लिखी थी जिसका परचा मेरे पर्स में ही रखा था उस पर लिखा था

“फूलों ने कहा भवरे से क्या है रे जो तू हैं ढूंढता ?

भवरा मस्त मगन फूल के पास है झूमता ।

तितली ने पूछा पेड़ों से क्या है राज़ इन फलों की मिठास का ?

पेड़ों ने कहा चख कर देखो दुःख है इसमें धरती की प्यास का “

मैंने पूछा रब से क्या है तेरा मुझसे वास्ता ?

रब ने कहा बनाले मंजिल पाएगा खुद ही तू रास्ता ।

प्रेम ने पूछा दिल से क्या मतलब हैं इस एहसास का ?

दिल बोला जज़्बात ऐ सुकून है इस साथ का ।”

Author: Onesha

She is the funny one! Has flair for drama, loves to write when happy! You might hate her first story, but maybe you’ll like the next. She is the master of words, but believes actions speak louder than words. 1sha Rastogi, founder of 1shablog.com.

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