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तुम ही

काश वो अल्फ़ाज़, इन सिए हुए होठों पर वापस आ जाते,

तुम से जो कह न पाए कभी, काश के हम कह पाते |

मिलेगा मौका दुबारा अगर , ये शब्द क्या वापस आएँगे ?

कि तुम्हे इस दर्द ऐ दिल का हाल बयान कर पाएंगे ?

कह पाएंगे की कितना चाहा था तुम्हे ?

कह पाएंगे की कितना माना था तुम्हे ?

हम कह न पाए तब थे, कह न पाएंगे आज भी,

बस इसी आस में ज़िंदा हैं की बिन कहे समझ लो, तुम ही,

इन आँखों को पढ़ लो, तुम ही,

इस दिल पर हाथ रख कर अपनी धड़कनो को सुन लो, तुम ही

हमें अपना तो बना ही चुके हो,

बस ये हाथ और थाम लो, तुम्हीं |

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