पहली मुलाक़ात

pehlimulaqat

उसे जाते हुए बस में देखता ही रह गया और मैं बस वहीं खड़ा रहा |  कैसी वह कशिश थी, कैसी वह बारिश थी, कैसा मौसम था, कैसा वह समां था | जैसे इश्क़ का अधूरा सा अफ़साना था |

मेरा ध्यान फ़ोन की घंटी सुनकर टूटा जैसे किसी सोते हुए व्यक्ति को सुबह सुबह अलार्म ने उठा दिया हो | फ़ोन वसुधा का था, सुबह के 10 बजे से कब 12 बजे पता ही नहीं चला | मैंने हड़बड़ा कर फ़ोन उठाया , मैंने कभी उसकी आवाज़ नहीं सुनी थी उधर से गहरी आवाज़ में वो बोली 

“मैं 10 मिनट में पहुँच जाऊँगी, अभी रास्ते में हूँ |” 

“जी मैं निकलता हूँ|” मैंने  खुद को सहज रखते हुए कहा | 

“ओ के” कहकर उसने फ़ोन रख दिया | मेरे दिल की धड़कनों में उसकी आवाज़ सुनते ही जैसे मानो उथल पुथल हो गयी | 

उसके पीछे से बारिश की आवाज़ आ रही थी | मैंने ऑफिस की खिड़की से बाहर देखा, सुबह से बारिश का कहर जारी था, जब मैं ऑफिस के लिए घर से निकला उसी वक़्त बहुत तेज़ बारिश हो रही थी, मुझे लगा थोड़ी देर बाद बंद हो जाएगी पर क्या ही मालूम था की आज की ये बारिश क्या गुल खिलाने वाली थी | आज सुबह मैं वसुधा के बारे में सोचता हुआ निकला और छतरी रखना भूल गया | 

मैं थोड़ा डरा हुआ भी था की क्या होगा आज | आज मैं पहली बार उससे मुलाक़ात करने वाला था, मैंने अपनी पसंद की हलकी गुलाबी शर्ट पहनने के लिए तैयार कर ली, की आज तो वो मुझे देखकर, बस देखती ही रह जाए, मैं दिखने में ठीक ही था, पर उसकी फोटो देखकर लगा की वो काफ़ी खूबसूरत होगी | सुबह मैं आज इत्मीनान से तैयार होने के कारण घर से देर से निकला और बारिश में भीग गया | मेरी शर्ट में सिलवटें पड़ गयी थी । खैर मैंने जल्दी जल्दी में गाड़ी की चाबी उठाई और निकल गया। 

मैं जैसे ही ऑफिस में घुसा मेरे बालों का बुरा हाल हो गया था | रोज़ाना की तरह हिमानी मुझे अपनी तिरछी नज़रों से ताड़ने लगी, उसे लगता था कि मुझे पता नहीं चलता की वो मुझे ऐसे रोज़ चोरी छुपे देखती रहती है |

पायल ने आज नीले रंग की ड्रेस पहनी हुई थी, वो कॉफ़ी लेकर मेरे पास आयी और बोली 

“सर आज तो आप बहुत भीग गए हैं |”

मुझे मानो ऐसा लगा जैसे पायल की नज़रें मेरे पूरे शरीर का मुआयना कर रही हैं | 

मैं असहज़ अपनी टेबल की ओर मुड़ गया और उसे बोला सुरभि को मेरे केबिन में भेजो | 

“थैंक्स पायल” कहकर मैंने अपना मास्क उतारा और अपने कपड़े सुखाने का प्रयास करने लगा। आज बारिश के चलते मैं करीब आधे घंटे देरी से पहुंचा | अपने ऑफिस की खिड़की पर देखते हुए मैं कॉफ़ी पी रहा था की बारिश की बूँदें अनावरत खिड़की पर पड़ने लगी, बारिश मेरा सबसे प्रिय मौसम हुआ करता था | ऑफिस में जाने कहाँ मेरे सारे पसंदीदा मौसम निकलते चले जा रहे थे पता ही नहीं चला, कब इस कंपनी को शुरू करने में मैंने कई साल लगा दिए और समय में पीछे मुड़कर नहीं देखा | 

कॉफ़ी पीते हुए मैंने देखा की आज सुरभि अनायास ही अपनी नज़रें मेरी ओर टिकाये हुए मुझे देख रही है मैंने उसे काम समझा कर किसी तरह खुद को उसकी नज़रों से बचाया | 

मैंने कुछ ही दूरी पर एक कैफ़े पर उसे मिलने के लिए बुलाया था, मैं पहुंचा तो वो लाल रंग के सूट में बारिश में छाता लिए बाहर ही मेरा इंतज़ार कर रही थी | बारिश के कारण कोई और वहां नहीं था तो मैं पहचान गया की ये वसुधा ही है | मेरा मन थोड़ा खुश, थोड़ा बेचैन, उससे मिलने के लिए बेसब्र हो रहा था, मैंने किसी तरह खुद को शांत किया और गाड़ी के आईने में खुद को दोबारा देखा | मैंने अपनी तिरछी निगाहों से उसे ऊपर से नीचे तक देखा, अच्छी लग रही थी, उसके घुँघराले लम्बे बाल बारिश में गीले हो गये थे | उसने मास्क लगा रखा था|

मैं गाड़ी पार्क करके, गाड़ी से उतरा, मैं भीगने लगा और फ़ोन बज उठा, वसुधा का ही फ़ोन था, मैंने नज़रें उठा कर उसकी तरफ इशारा किया वो मुझे भीगता देखकर मेरे पास छाता लेकर आयी , मैंने अपना मास्क ऊपर चढ़ा लिया और उसके साथ साथ छाते में कैफ़े के अंदर चल दिया, वो जैसमिन के फूलों जैसी महक रही थी  | मैंने उससे नज़रें मिलायी और शायद वो मुस्कुराई पर मास्क की आड़ में उसकी सुंदर मुस्कान को मैं देख नहीं पाया |  मैं बारिश में काफी भीग गया था, कैफ़े के अंदर जाते ही मैं रेस्टरूम की तरफ बढ़ गया, मैंने खुद को देखा और मेरी हालत खराब थी |मैं बाहर निकला और मैंने हिम्मत करते हुए उसकी तरफ कदम बढ़ाये वो एक टेबल पर अपना पर्स और छाता रख के मेरा इंतज़ार कर रही थी | मैंने अनायास ही हाथ मिलाने के लिए उसकी तरफ हाथ बढ़ा दिया, मैं अपने पागलपन पर अफ़सोस करता की ये मैंने क्या किया इससे पहले ही उसके कोमल हाथ मेरे हाथों में आकर थम गए | कोरोना का डर, उससे मिलने का डर, भीग कर बुरा दिखने का डर, मैं थोड़ा असहज हो गया था, मैं उसके सामने आकर बैठ गया और ऑफिस के ग्रुप पर काम का मैसेज करके उससे बोला 

“हाँ जी वसुधा आप बताइये?”

वो मास्क उतार के मुझे बड़ी बड़ी आँखों से देखने लगी और हल्का सा मुस्कुरायी , मैंने भी उसे देख के मुस्कान उभार ली, वो भी बारिश में हल्का भीग गयी थी | उसकी काली आँखों में देख कर मैं बस उसे देखता ही रह गया, मैंने उसे यह महसूस नहीं होने दिया कि मैं उसे देखकर उसका कायल हो गया हूँ | उसका काजल, आँखों की खूबसूरती को और बढ़ा रहा था, उसने मुस्कुराके पलकें झुका ली, उसकी पलकें उसके कपोल को छूकर ऐसे ऊपर उठी जैसे बारिश के बाद सूरज बादलों  में से झाँकता हुआ रौशनी सी कर  देता है | उसकी आँखों में मुझसे मिलने की खुशी थी , शायद वो भी मुझसे मिलने के लिए बेसब्र थी , मैं उससे बात करने लगा और अचानक मेरी बात सुनकर वो खिलखिला कर हँसने लगी, उसे हँसते देख मैंने थोड़ी चैन की साँस ली, उसे देखकर मेरा उसके चेहरे से नज़रें हटाने का मन नहीं किया, उसके होंठ स्ट्रॉबेरी लिपस्टिक से ओत प्रोत बड़ी ही सुंदर मुस्कान लिए मुझे देख रहे थे, मैं उसे एकटक देखना चाहता था, मैंने खुद को बड़ी शालीनता से पेश करते हुए अपने मन और नज़रें के बीच में ऐसा तालमेल बैठाया की मैं उसे नहीं भी देख रहा होता तो मुझे उसके होंठ और उसके गालों और उसकी आँखों के नज़ारे अपनी आँखों के कोनों से दिख रहे थे, मैं उसकी तस्वीर अपने मन में क़ैद  कर लेना चाहता था , वो फोटो से कही अधिक चंचल और खूबसूरत थी | तभी मैंने उससे कुछ कहा और वो फिर से अपनी बड़ी बड़ी आँखों से मुझे देखने लगी और अचानक से उसने अपनी नज़रें चुरा ली, मैंने उसे देखा और उससे पानी के लिए पूछा , वो थोड़ी व्याकुल सी दिखाई पड़ी, पानी पीकर वो थोड़ा सहज हुई और कुछ कहने लगी, पता नहीं क्या बोल गयी, उसके नरम चेहरे पर गड्ढे  देखकर उसकी प्यारी मुस्कान जैसे मेरे दिल में जाकर  लगी |  मुझे शायद अब ये एहसास हो रहा था कि  हिमानी सुरभि और पायल मेरे साथ ऐसे क्यों रहती थी ? 

टेबल पर कॉफ़ी आ गयी थी और वो कॉफ़ी पीते हुए बात करने लगी, तभी एक बच्चा कुछ मांगता हुए कैफ़े के दरवाज़े की तरफ आवाज़ लगाने लगा “दीदी दीदी, आटा लेना है पैसे दे दो”  वो मेरी तरफ देखने लगी और पूछने लगी कि “शायद कुछ खाने को मांग रहा है, कुछ दे इसे?” मैंने उसे कुछ कह पाता कि ये बिक्कु है और मुझे जानता है | उससे पहले कैफ़े वाले ने बिक्कु को वहां से जाने के लिए कह दिया | 

वसुधा ने कुछ खाने के लिए मंगवा लिया और इतने में बिक्कु दोबारा दीदी दीदी कहकर कैफ़े के गेट पर आ गया, मैंने देखा वसुधा का ध्यान काफी देर से मेरी तरफ न होकर बिक्कु पर है, उसने बिक्कु को बुलाया और जो हम खा रहे थे उसमे से उसे अपनी पसंद की चीज़ खा लेने को कहा |

मैंने बाहर मौसम देखा तो बारिश अब रुक चुकी थी और हल्की हल्की फुहारें पड़ रही थी | मेरा मन उसके साथ बाहर घूमने का करने लगा पर पहली मुलाक़ात एक अजनबी के साथ पता नहीं वो बाहर जाएगी भी या नहीं  | मैं जनता था बिक्कु को पैसे चाहिए, पर वसुधा का अपनापन देख कर मैं कुछ कह नहीं सका |  बिक्कु ज़िद पर अड़ा रहा  “पैसे दे दो”, इतने में कैफ़े वाले ने फिर से उसे बाहर जाने को कह दिया | 

मैंने कुछ सोचते हुए बिक्कु को आँखों में इशारा करते हुए कहा, यहीं रहे, और हिले नहीं, बिक्कु काफी तेज़ था मेरा इशारा समझ गया और उसने वसुधा का दुपट्टा पकड़ लिया | 

वसुधा मुझसे बड़ी ही मासूमियत से पूछने लगी की इसे पैसे दे दें क्या ? मैंने कहा आओ बाहर चलते हैं ये यहाँ काफी देर से परेशान कर रहा है| मैं बताता हूँ इसके बारे में | बस वो तुरंत राज़ी हो गयी और उसे मैं बाहर ले आया | 

उसके हाथ में उसका कॉफ़ी का पेपर कप जिससे वह कॉफ़ी पी रही थी अभी भी भाप छोड़ रहा था, मौसम ठंडा हो गया था, रिमझिम हो रही थी, उसने अपने कप को अपने हाथ से ढक लिया |  वो मेरे साथ बाहर साइड वॉक पर चलते हुए बोली 

“अभी भी बारिश हो रही है |” मैं हँसते  हुए बोला की “इसे बारिश नहीं कहते | ”

तभी बिक्कु उसका दुपट्टा पकड़ के पीछे पीछे चलने लगा और आटे के लिए पैसे मांगने लगा , मैंने सोचा इसे पैसे दे देता हूँ तभी मैंने जेब टटोली तो मैं अपना वॉलेट ऑफिस में ही भूल आया था | कैफ़े का बिल वो भर चुकी थी मैं बिलकुल हर चीज़ भूला बैठा था| पहले छाता और अब वॉलेट | 

बिक्कु ने मुझे देखा “पैसे दे दो, आज तो काफी खुश लग रहे हो भैया क्या बात है?”  तो मैंने उसे झेंपते हुए कहा “मैं देता हूँ पैसे वापस आकर, तुम मिलोगे यहीं तो ज़रूर दूँगा | ”

वसुधा से खुद को बचाने के लिए मैं बोला “मुझे लगा तो था की ये तो वही बच्चा है जो कुछ दिन पहले मुझे पिछली गली में माँ  के साथ कुछ सामान लेने आया था तब दिखा था और माँ ने खुश होकर इसे पैसे भी दे दिए थे और उसके बाद कितने सारे बच्चे माँ के पास आकर पैसे मांगने लगे थे और माँ को मैं वापस गाड़ी में ले गया था , मैं समझ गया आज भी यही होने वाला है, इसलिये मैंने उसे कहा “अभी वापस आकर देता हूँ पैसे, अभी मिलना यहीं थोड़ी देर में आते हैं यहीं” ऐसा बोल कर मैं बिक्कु का शुक्रिया अदा करने लगा मन ही मन की बिक्कु के बहाने मैं वसुधा को बाहर सुहाने मौसम में ले आया और उसके साथ एक लॉन्ग ड्राइव के बारे में सोचते हुए मैं गाड़ी की तरफ बढ़ गया, मेरे गहरे नीले रंग की गाड़ी बारिश में भीगी एक दम चमक रही थी, मैंने आगे बढ़ के उसके लिए दरवाज़ा खोला, वो गाड़ी में बैठ गयी और अपना दुपट्टा संभालने लगी उसके लाल सूट का पीला दुपट्टा जैसे मानो इंतज़ार कर रहा हो कि मैं ही उसे उठाकर दरवाज़ा बंद करूँ, पर हिम्मत नहीं कर पाया | उसने दुपट्टा संभाला और मैंने दरवाज़ा बंद कर दिया |

मैंने गाड़ी स्टार्ट करी और वो कॉफ़ी खत्म कर बोली “ये कप कहां रख दूँ, या यहीं रख दूँ ?” मैंने कप होल्डर का सामान ऊपर रखा और उसने अपना जूठा कप, होल्डर में रखा और हम वहां से निकल गए | वो मुझसे बात करती रही मैं सुनता रहा |

उसके सवालों का जवाब देते हुए मैं धीरे धीरे गाड़ी चलाते हुए एक्सप्रेस वे पर ले गया| मैंने भी उससे बात करना शुरू कर दिया, एक दम सरल स्वभाव से वो मुझसे बातें करती रही, मैं ड्राइव करते वक़्त उसे ज्यादा नहीं देख पा रहा था, पर वो मुझे ही देखे जा रही थी, जैसे ही मौका मिलता कुछ पूछ कर वो मेरी ओर देखने लगती और मैं देखता तो नज़रें सामने कर लेती, कुछ पलों तक नज़रें मिलती रही, और वो नज़रें चुराती रही | मैंने माहौल सहज रखने के लिए उससे हँसी मज़ाक करना शुरू कर दिया, वो बहुत ही खुश बैठी हुई हँसती रही | मैंने गाड़ी फ्लाईओवर पर मोड़ ली, वो खिड़की से बाहर देखने लगी और फिर अचानक मेरी तरफ देखने लगी और हमारी नज़रें मिली ,उसकी आंखों पर उसके खुले बाल आने लगे थे, मैंने सोचा की अपनी ऊँगली से उसकी जुल्फें हटा कर उसके कान के पीछे की ओर कर दूँ इतने में उसने खुद ही अपने बाल पीछे कर लिये और उसके कान के झुमके खनक गए, वो पलकें झुकाऐ सांस थामे बैठी रही , मैं उसकी इस अदा पर बस मर ही गया , और उसके लबों को छूने की चाहत में खुद को रोक नहीं पाया , उस एक पल में मैं जैसे उसे हमेशा के लिए अपना बनाना चाहता था | मैंने सांस लेते हुए सड़क पर ध्यान केंद्रित कर लिया | उसने गहरी सांस लेते हुए अपने दोनों हाथ कस कर अपने पर्स पर रख लिए | 

रास्ता सुहाना था और उससे बात करते हुए एक घंटा कब निकल गया मुझे पता ही नहीं चला | अब ऑफिस से लगातार फ़ोन आने लगा, मैंने तुरंत कैफ़े की तरफ गाड़ी मोड़ दी और अब हम वापस जा रहे थे |

हम वापस कैफ़े के पास आ गए, मैंने गाड़ी लगायी और उसे छोड़ने के लिए उसकी गाड़ी की तरफ बढ़ गया, मैंने उसे विदा किया और वो मुझे टेक केयर कहकर मास्क चढ़ा कर चली गयी, जाते वक्त  मैं बस उसकी आँखें ही देख पाया | उसे जाते हुए बस में देखता ही रह गया और मैं बस वहीं खड़ा रहा |  मैं समझ ही नहीं पाया कि एक पल में अचानक क्या हो गया मैं इतना बेबस कब से हो गया?

शाम को घर लौटते वक़्त मैं जब गाड़ी में बैठा तो मेरे साइड वाली सीट से वसुधा की खुशबू आ रही थी, और अचानक उसका चेहरा मेरी आँखों के सामने घूम गया | अपनी महक मेरी पूरी गाड़ी में बिखेर आज वो मुझसे पूरी तरह बिना मिले ही चली गयी, मैंने घर जाने के लिए गियर लगाया तो उसका कॉफ़ी का कप अभी तक ऐसे ही रखा था , मैंने रेडियो लगाया और संयोग से ही मेरा पसंदीदा गाना रेडियो पर बज उठा और मैं गुनगुनाता हुआ घर की ओर बढ़ गया और उसके बारे में सोचने लगा, मेरा उसको इसी पल देखने का दिल करने लगा, मैं एक पल को तड़प सा गया उसे लाल सूट में दोबारा देखने के लिए, घर पहुँच कर भी मेरा मन नहीं लगा, मैं पूरी रात सो नहीं पाया और उससे मिलने की आस लगाए मैं सोने की कोशिश करने लगा, मैं हमेशा से सोचा करता था, बारिश का मौसम हो, एक साथी हो और लॉन्ग ड्राइव पर मैं उसे लेकर जाऊँ, आज की हमारी पहली मुलाक़ात ही इतनी हसीन और यादगार बन जाएगी, ऐसा मैंने नहीं सोचा था| उससे मिलने की ख़्वाहिश हर पल बस अब बढ़ती ही जारी थी , शायद मुझे पहली ही मुलाक़ात में अपनी होने वाली पत्नी से इश्क़ हो गया था | 

Author: Onesha

She is the funny one! Has flair for drama, loves to write when happy! You might hate her first story, but maybe you’ll like the next. She is the master of words, but believes actions speak louder than words. 1sha Rastogi, founder of 1shablog.com.

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